प्रयागराज शहर का विस्तृत विवरण
प्रिय पाठकों आज मै अपने ब्लॉग मे आपको बताना चाहता हूँ की(Discovery Of India)भारत देश एक देश ही नहीं यह देवों की प्रिय धरती भी है जहां की कण कण मे और रोम रोम मे राम बसे है वैसे तो इसकी अखंडता एवं संप्रभुता को नस्त करने के लिए लगभग 6वीं शताब्दी से ही खड़यंत्र किए जा रहे है और वह कुछ हद तक सफल भी हुए है जैसे की इसकी अखंडता को छिन्न भिन्न करते हुए अब मानचित्र पर कई अलग अलग देश बन चुके हैं परंतु अभी भी जो शेष भारत भूमि यहाँ के हिंदुओं के हाथों मे बची है उसको ही स्वर्ग जैसा ही बना दिया है कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत को सँजो कर रखने का काम यहाँ की सनातनी संस्कृति ने बखूबी किया है आज इसी देवों की भूमि के बारे मे मै अपने ब्लॉग की शुरुआत भारत देश की एक ऐसी नगरी से कर रहा हूँ जिसे अध्यात्म की नगरी भी कहा जाता है जिसका नाम पुराणों मे भी मिलता है और इस नगरी को प्रयागराज के नाम से जाना जाता है
प्रयागराज की पावन धरा पर कल कल करती बहती हुई गंगा यमुना सरस्वती को ही त्रिवेणी भी कहा जाता है सनातन धर्म मे मान्यता है की अगर मरने के बाद गंगा नदी मे अस्थियों को प्रवाहित करने से व्यक्ति को जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है यहाँ स्थित मंदिरों की मान्यता है की यह आदि काल से ही स्थित है आइए मै आपको आज प्रयागराज के दर्शन करवाता हूँ
गंगा नदी

सनातन धर्म की पुराणों मे लिखा है की गंगा नदी का उद्गम भागीरथी के तपस्या के कारण हुआ था उन्होंने अपने पुत्रों को मुक्ति के लिए तप किया जिससे प्रसन्न होकर आदि देव महादेव ने गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर जाने का आदेश दिया एवं उनके वेग को अपने जटाओं मे बांध कर धीमा कर दिया था जो की आज भी धरती पर कल कल बहती हुए मानवीय जीवन को सरल बना रही हैं
गंगा नदी का उद्गम स्थल
सनातन धर्म के अनुसार गंगा नदी का उद्गम स्थल देव भूमि उतराखंड की पहाड़ियों के गौ मुख नामक स्थान से हुआ है भगवान शिव की जटाओं से निकल कर गंगा गौ मुख पर ही अवतरित हुई थी वहाँ से बहती हुई गंगा भारत के सात राज्यों से बहती हुई बंगाल की खाड़ी मे जाकर समुद्र मे मिल जाती हैं
यमुना नदी
प्रयागराज की पावन धरा पर ही एक नदी का अस्तित्व समाप्त हो जाता है जिसका नाम यमुना है सनातन धर्म के अनुसार यमुना गंगा की छोटी बहन है
यमुना नदी का उद्गम स्थल
सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार यमुना का उद्गम स्थल भी उत्तराखण्ड की पहाड़ियों के यमुनोत्री नामक स्थल से हुआ है उत्तराखंड की पहाड़ियों से निकल कर यमुना नदी भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के प्रयागराज मे आकर गंगा नदी से मिल जाती हैं
सरस्वती नदी
प्रयागराज मे ही एक और नदी बहती है जो की प्रत्यक्ष नहीं दिखाई पड़ती है जिसका नाम सरस्वती नदी है सनातन धर्म के अनुसार सरस्वती नदी प्रयागराज मे अदृश्य रूप मे गंगा एवं यमुना मे मिलती है जिससे इस स्थान को त्रिवेणी भी कहा जाता है
सरस्वती नदी का उद्गम स्थल
सनातन धर्म के अनुसार सरस्वती नदी उत्तराखण्ड की पहड़ियों के नर नारायण नामक पर्वत से निकलती है और वहीं पर धरती मे विलुप्त हो जाती है जो की धरती के नीचे नीचे ही बहती हुई उत्तरप्रदेश के प्रयागराज नामक नगरी मे आकर गंगा एवं यमुना मे मिलती हैं और यहीं स्थान संगम के नाम से भी विश्व विख्यात है
बड़े हनुमान ( लेटे हुए हनुमान जी )

प्रयागराज मे ही गंगा नदी के उत्तर की तरफ एक प्राचीन हनुमान मंदिर है जिसमे की भगवान हनुमान जी की लेटी हुई विशालकाय प्रतिमा स्थापित है सनातन धर्म को मानने वाले लोगों का कहना है की त्रेतायुग मे जब लक्ष्मण जी और मेघनाध मे युद्ध हुआ था और उस युद्ध मे लक्ष्मण जी को मेघनाध के द्वारा शक्ति प्रहार से मूर्छित कर दिया गया था तब सुखेन वैध के परामर्श से संजीवनी बूटी लाने का कार्य दिया गया था तब इसी रास्ते से वापस जाते समय भरत जी द्वारा तीर मारा गया जिससे की हनुमान जी यहीं पर आकर गिरे थे तबही से यह प्रतिमा उनका प्रति रूप ही है और भी कई कथाएं प्रचिलित हैं जैसे की अकबर द्वारा किले के निर्माण के समय इस प्रतिमा को हटाने के लिए प्रयास किया गया परंतु यह प्रतिमा कोई हटा नई सका एवं यह मजदूरों द्वारा खुदाई से नीचे की ओर ही जाति गई और थक हार कर अकबर को अपना आदेश वापस लेना पड़ा तब से यह प्रतिमा आज तक वैसे ही लेटी हुई मुद्रा मे यहाँ विराजमान है
उल्टा किला एवं समुद्र कूप
उल्टा किले के अंदर ऐतिहासिक और पवित्र समुद्र कूप:
इतिहासकार प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि इस कूप का निर्माण गुप्त वंश के शासक "समुद्रगुप्त" ने कराया था. बाद में ब्रिटिश हुकूमत में लार्ड कर्जन ने इसका जीर्णोद्धार कराया था. यहां पर मेड इन इंग्लैंड दर्ज है
गंगा नदी के दक्षिण मे मे एक ऐसा किला भी है जिसे उल्टा किला के नाम से जाना जाता है और इसी किले मे मे एक कुआं भी है जिसकी गहराई आज तक कोई भी नहीं जान सका है
अकबर का किला
गंगा नदी के उत्तर मे ही अकबर द्वारा बनवाया विशाल किला भी स्थित है जो की बहुत ही विशाल है और ब्रिटिश काल के बाद से यह किला भारत सरकार द्वारा संरक्षित किया जाता है
वट वृक्ष
गंगा नदी के उत्तर मे स्थित अकबर के किले के अंदर ही एक बरगद का विशाल वृक्ष स्थित है सनातन धर्म के अनुसार पृथ्वी के निर्माण के साथ ही यह वृक्ष भी धरती पर अवतरित हुआ था और यह कभी भी नस्ट नहीं हो सकता है अकबर द्वारा किले के निर्माण के समय और उसके पहले भी मुगल आक्रमणकारियों द्वारा समय समय पर इसे नस्ट करने भरपूर प्रयास किया गया परंतु यह वृक्ष आज भी वैसा का वैसा ही अपनी जगह पर खड़ा है पहले तो वृक्ष के दर्शन की कोई व्यवस्था नहीं थी पर अब सरकार ने इसके लिए बाकायदा एक कॉरीडोर का निर्माण करवा कर दर्शनार्थियों को दर्शन सुलभ करवा दिया है