कुंभ मेला प्रयागराज सनातन धर्म मे मान्यता है एवं पुराणों मे भी लिखा है की सतयुग काल मे देवों और दानवों मे एक संधि के तहत समुन्द्र मंथन हुआ था जिसमे से नौ रत्नों की प्राप्ति हुई थी एवं उन्ही नौ रत्नों मे से एक रत्न अमृत कलश भी निकला था जिसको पाने के के लिए सभी मे युद्ध क्षिण गया तब भगवान विष्णु ने मध्यस्ता करते हुए अमृत को सभी मे बराबर बराबर बांटने को कहा और मोहिनी नामक सुंदर नारी का रूप बनाकर सभी दानवों को भ्रमित करते हुए अमृत देवों को पिलाने लगे परंतु एक उनमे से एक दानव बहुत ही चतुर था जिनका नाम राहू था वह चुपके से भेष बदल कर देवों की पंक्ति मे बैठ कर अमृत पी लिया इस बात की जानकारी सूर्य और चंद्रमा ने भगवान विष्णु को दी तब भगवान विष्णु ने उनका पीछा करते हुए उनके सर को काट दिया परंतु वह अमृत पीने की वजह से अमर हो गया और उसके ऊपरी भाग को राहू और नीचे के भाग को केतु के नाम से जाना गया इसी क्रम मे भगवान विष्णु जहां जहां से गुजरे तो अमृत कलश से जो बूंदे गिरी वह प्रयागराज के त्रिवेणी नामक तट स्थान पर गंगा यमुना सरस्वती की धारा मे भी गिरा तब से मान्यता है की संगम मे स्नान करने से अमृत के समान पुण्य प्राप्त होता है

कुंभ मेला प्रयागराज
प्रयागराज मे गंगा यमुना सरस्वती के तट पर ही एक विशालकाय पौराणिककाल से मेला लगता है जो की बहुत ही प्राचीन मेला है और विश्व विख्यात मेला है जो माघ के माह से शुरू होकर फाल्गुन माह तक चलता रहता है एवं मेला मकरसंक्रांति से शुरू होकर महाशिवरात्रि तक लगभग दो महीने तक चलता है और इस मेले मे पूरे विश्व से लोग भारतीय संस्कृति का दर्शन करने के लिए आते हैं इन दो माह मे लोग यहाँ पर एक तंबू मे रहकर भगवान की साधना एवं पूजा करते है जिसको की कल्पवास करना कहते हैं सनातन धर्म मे मान्यता है की माघ के माह मे गंगा नदी के संगम मे स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है यह मेला प्रत्येक साल कुंभ के नाम से एवं छः साल पर अर्ध कुंभ के नाम से एवं बारह साल पर कुंभ के नाम से और चौबीस साल पर लगने वाले मेला को महाकुंभ के नाम से भी जाना जाता है
इस मेला की खास बात यह है की लगभग पाँच किलोमीटर मे लगने वाले इस मेला मे एक पूरा शहर बसाया जाता है जिसको की तंबुओ की नगरी भी कहते हैं पवित्र संगम पर दूर-दूर तक पानी और गीली मिट्टी के तट फैले हुए हैं। नदी के बीचों-बीच एक छोटे से प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े होकर पुजारी विधि-विधान से पूजा-अर्चना कराते हैं। धर्मपरायण हिंदू के लिए संगम में एक डुबकी जीवन को पवित्र करने वाली मानी जाती है। संगम के लिए किराये पर नाव किले के पास से ली जा सकती है। कुंभ/महाकुंभ पर संगम मानो जीवंत हो उठता है। देश विदेश से श्रद्धालु यहां आते हैं और इसकी रौनक बढ़ाते हैं। यह वह स्थान है जहां की गंगा का मटमैला जल और यमुना का हरा जल एवं अदृश्य बहने वाली सरस्वती नदी का संगम होता है यह मेला आस्था,विश्वास, सौहार्द एवं संस्कृतियों के मिलन का संगम है और मनुष्य तो अपने मुक्ति के लिए कल्पवास करते ही हैं परंतु एक और खास बात है की इन्ही माह मे मेला के दौरान ही साइबेरिया से मेहमान यहाँ आते है जो की साइबेरियान पक्षी के नाम से जाने जाते हैं जो हजारों किलोमीटर की दूरी तय करके प्रयागराज मे संगम मेले के दौरान यहाँ पहुचते हैं और पूरे मेला समय तक यहाँ प्रवास करते हैं
